किरायेदारी विलेख के लिये आवश्यक शर्ते (Prerequisites for Tenancy Deed) | Rent Agreement Format in Hindi

Rent Agreement

Rent Agreement किरायेदारी विलेख वैसे तो हम सभी ने सुना होगा कि जब किसी घर/दुकान/प्लाट को रहने या व्यापार करने के उद्देश्य से किराये पर लेते है, तो किरायेदारी के लिये एक कानूनी दस्तावेज बनाते है, जिसे ही किरायेदारी विलेख कहते है। किरायेदारी विलेख मकान मालिकों और किरायेदारो दोनों के अधिकारों और हितों की रक्षा करता है, इसके अलावा यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण भी है कि भविष्य में किसी भी गलतफहमी या विवाद से बचने के लिए किरायेदारी की सभी शर्तें स्पष्ट दर्ज होने चाहिये।

Rent Agreement किरायेदारी विलेख के लिये मकान मालिक और किरायेदार दोनों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे किरायेदारी विलेख को ध्यान से पढ़ें और इस पर हस्ताक्षर करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि वे सभी शर्तों पालन करे। यदि किसी भी पक्ष के मन मे कोई प्रश्न या चिंताएँ हैं, तो उन्हें भी समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले कानूनी सलाह ले लेनी चाहिए।

HIGHLIGHTS

Rent Agreement एक तरह से समझौता/करार होता है जो एक व्यक्ति या निकट भविष्य में किसी अन्य व्यक्ति के साथ अपनी संपत्ति का इस्तेमाल करने के लिए करार कराया जाता है। आमतौर पर, इसमें संपत्ति का वर्णन, किराया, भुगतान की तारीखें, सुरक्षा जमानत, समय सीमा और आवासीय विवरण भी शामिल होते हैं।

रेंट एग्रीमेंट को कैसे तैयार करें? (How to prepare rent agreement?)

यह ध्यान रखना भी आवश्यक होगा कि किराए के लिये दोनो पक्षों की आपसी सहमति एवंम् शर्तो को मानना एवंम् उन शर्तो को अमल करना भी उतना ही दोनो पक्षो को आवश्यक होता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि अनुबंध कानूनी रूप से बाध्यकारी है और सभी स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा होना आवश्यक है, एक वकील या रियल एस्टेट पेशेवर से परामर्श करना एक अच्छा विचार हो सकता है।

रेंट एग्रीमेंट/किरायानामा बनाने के महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट/ दस्तावेज

किसी किराएदार को संपत्ति किराए पर देते समय, मकान मालिक को किराये की व्यवस्था के साथ नियमों और शर्तों को स्थापित करने के लिए एक किरायेदारी समझौता या विलेख तैयार करना चाहिए। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं जिन्हें किरायेदारी विलेख में भी शामिल किया जाना चाहिए:

रेंट एग्रीमेंट: रेंट एग्रीमेंट या डीड एक कानूनी दस्तावेज है जो किराएदारी के नियमों और शर्तों को स्पष्ट करता है, जिसमें किराया, सुरक्षा जमा, रखरखाव की जिम्मेदारियां और अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान भी शामिल होते हैं।
पहचान दस्तावेज: मकान मालिक और किरायेदार दोनों को अपने पहचान दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस या मतदाता पहचान पत्र प्रदान करना चाहिए।
स्वामित्व का प्रमाण: मकान मालिक को संपत्ति के स्वामित्व का प्रमाण देना चाहिए, जैसे संपत्ति विलेख, बिक्री विलेख, या शीर्षक दस्तावेज़।
भुगतान रसीदें: मकान मालिक को किरायेदार द्वारा भुगतान किए गए किराए और सुरक्षा जमा राशि के लिए भुगतान रसीदें प्रदान करनी चाहिए।
अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी): यदि संपत्ति का स्वामित्व कौन है या किसके पास गिरवी है, तो मकान मालिक को बंधक ऋणदाता से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) प्रदान करना चाहिए।
पुलिस सत्यापन: मकान मालिक को किरायेदार का पुलिस सत्यापन जरूर कराना चाहिए।
बिजली का बिल: मकान मालिक को संपत्ति के पते के प्रमाण के रूप में नवीनतम् बिजली के बिल की एक प्रति प्रदान करनी चाहिए।

रेंट एग्रीमेंट 11 महीने का ही क्यों होता है? (Why is the rent agreement only for 11 months?)

भारत में, किरायेदारी 11 महीने की अवधि के लिए होना आम बात है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि कोई रेंट एग्रीमेंट 12 महीने या उससे अधिक की अवधि के लिए बनाता है, तो इसे लीज एग्रीमेंट lease agreement माना जाता है और रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत विभिन्न कानूनों और विनियमों के अधीन होता है। लीज समझौतों के लिए न्यायालय मे पंजीकरण और स्टांप शुल्क का भुगतान करना आवश्यकता होता है, जो कॉफी महंगा पड़ जाता है, इसलिये अधिकांशतः लोग मात्र 11 माह की किरायेदारी कराना आवश्यक है।

क्या 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट वैध होता है? (Is 11 months rent agreement valid?)

हां भारत मे यदि कोई 11 माह का रेंट एग्रीमेंट 100/- रूपये के स्टाम्प पेपर पर नोटरीड एग्रीमेंट वैध माना जायेगा। यदि 100/- रूपये के कम मूल्य के स्टाम्प पेपर पर कोई एग्रीमेंट बनाता है, तो वह वैध नही माना जायेगा। इसके अलावा 11 माह की किरायेदारी विलेख को समाप्त करना और नवीनीकरण करना आसान होता है।

किरायानामा Rent Agreement कैसे लिखा जाएगा? | Rent Agreement Format in Hindi

किरायानामा Rent Agreement Format in Hindi किरायेदारी का प्रारूप हिन्दी मे मकान मालिक और किरायेदार की आवश्यकताओं के साथ-साथ उनके अधिकार और कानूनों के आधार पर भिन्न हो सकता है जहां संपत्ति स्थित है। हालाँकि, एक रेंट एग्रीमेंट प्रारूप में निम्नलिखित जानकारी शामिल हो सकती है। इकरारनामा किरायेदारी हिन्दी फार्मेट मे जो निम्नलिखित है, अपनी शर्तो के अनुरूप भी किरायेदारी विलेख मे बदलाव कर सकते है।

Rent Agreement Format in Hindi

इकरारनामा किरायेदारी श्री ……………………………. पुत्र ………………………………….. निवासी …………………………………………………….. । (उ0 प्र0) । . प्रथम पक्ष/मकान मालिक एवंम् श्री ……………………………. पुत्र ………………………………….. निवासी …………………………………………………….. । (उ0 प्र0) । . व्दितीय पक्ष/ किरायेदार यहकि प्रथम पक्ष ने अपनी दुकान/घर/प्लाट . उ0 प्र0, श्री . को किराये पर ता0 . से दिया गया है, जिसे 11 माह के लिये किरायेदारी पर व्दितीय पक्ष को निम्न शर्तो व हिदायतों के साथ दिया गया है । 01. यहकि प्रथम पक्ष व्दारा व्दितीय पक्ष से सिक्योरिटी के तौर पर रू0 . रूपया हिन्दी मे . चेक/आरटीजीएस के माध्यम से जमा कराया गया है और व्दितीय पक्ष व्दारा जब किरायेदारी खत्म की जायेगी, तो वापसी कर दिया जायेगा। (आपकी दोनो पक्षो के शर्तो के अनुसार) 02. यहकि प्रथम पक्ष व व्दितीय पक्ष के मध्य मासिक किराया . रूपया . प्रति माह तय हो चुका है । 03. यहकि व्दितीय पक्ष प्रथम पक्ष के प्रत्येक माह की 10 तारीख को किरायेदारी की रकम अदा करेगा। 04. यहकि प्रतिवर्ष किराये मे 5 प्रतिशत (पांच प्रतिशत) की बढोत्तरी होगी जो दोनो पक्षो के मध्य परस्पर सहमति से तय हो चुका है, प्रथम बढोत्तरी सितम्बर 2022 से प्रारम्भ होगी तथा प्रतिवर्ष सितम्बर माह से बढोत्तरी होगी रहेगी । 05. यहकि व्दितीय पक्ष दुकान के निर्माण मे प्रथम पक्ष की अनुमति के बिना कोई बदलाव व निर्माण कार्य नही करेगां और न ही निर्माण को छतिग्रस्त करेगा। 06. यहकि व्दितीय उक्त परिसर मे कोई प्रतिबन्धित गैर कानूनी विस्फोट या अन्य कोई जन विरोधी धार्मिक उनमाद जैसी गतिविधियां नही संचलित करेगा, यदि ऐसा कोई कार्य जिससे पुलिस की कार्यवाही, कार्यपालिका या न्यायपालिका का हस्तक्षेप होता है या प्रथम पक्ष को भी इस दायरे मे आना पडता है, तो प्रथम पक्ष किरायेदारी समाप्त करते हुये अपने खर्चे का समायोजन व्दितीय पक्ष व्दारा जमापेशगी से करते हुये परिसर खाली करवा लेंगा । 07. यहकि उक्त व्यापार स्थल परिसर केवल तय सुदा व्यापार करने हेतु ही किराये पर दिया जा रहा है, अन्य कोई कार्य व व्यापार पूर्णतयाः प्रतिबन्धित है । 08. यहकि 11 माह पूरे होते ही प्रथम पक्ष एवंम् व्दितीय पक्ष आपसी सहमति से पुनः इस इकरारनामे की अवधि 11 माह के लिये बढाने के लिये स्वतन्त्र होगें। 09. यहकि व्दितीय पक्ष को समस्त कर गृह/दुकान जैसे- हाउस टैक्स, वाटर टैक्स का वहन स्वंय करेगा, प्रथम पक्ष को गृह/दुकान कर मे कोई देयता नही होगी और समस्त देय कर समय से व्दितीय पक्ष व्दारा जमा कराना होगा। अतः हम दोनो पक्षो के अपने स्वस्थ मन बुद्धि एवंम् इन्द्रियों की सही अवस्था खूब सोच समझकर बिना दबाव नाजायज के खूब पढ सुनकर साक्षियों के समक्ष अपने-अपने हस्ताक्षर बनाकर यह किराया अनुबन्ध पत्र तहरीर व तकमील कर दिया है, कि प्रमाण रहे और समय पर कान आवे। पहचान के लिये अचल सम्पति का विवरण नक्शा सीमा व पैमाईश मकान /प्लाट/फलेट/दुकान/फैक्टरी/उद्योगिक प्लाट के केस में पूर्व : – —————————- फुट————————————- इंच————————————। पश्चिम :- ———————— फुट————————————– इंच————————————। उतर :- —————————फुट————————————– इंच————————————। दक्षिण :- ————————–फुट————————————– इंच————————————। स्थित —————————– हस्ताक्षर गवाहान 01. . . प्रथम पक्ष/मकान मालिक . व्दितीय पक्ष/किरायेदार 02. . दिनांक – ……………… तहरीर दिनांक – . स्थान कानपुर नगर ।

किरायेदारी विलेख हिन्दी मे वर्ड फाइल यहां से डाउनलोड कर सकते है Rent Agreement in Hindi

नया किराया कानून क्या है?

किरायेदार और मकान मालिक के मध्य वाद विवाद तो बने ही रहते है, जिसके चलते केन्द्र सरकार व्दारा 2021 मे नये कानून बनाये गये है, जिसके तहत किरायेदार एवंम् मकान मालिक के अधिकार तय किये गये है, जो निम्नप्रकार है-

किरायेदार के अधिकार

घरेलू मकान के लिये जमानत राशि दो माह के किराये से अधिक नही होगी। कामर्शियल उपयोग के उद्देश्य से जमानत राशि छः माह के किराये से अधिक नही होगी। किरायेदार को मकान या दुकान खाली करने के लिये एक माह के भीतर जमानत राशि लौटानी होगी। किराया बढ़ाने की स्थिति मे तीन माह पूर्व से ही किरायेदार को अवगत कराना आवश्यक है। किरायेदार से झगड़ा होने की स्थिति मे कोई भी मकान मालिक पानी-बिजली अपूर्ति बंद नही कर सकता है, न्यायालय व्दारा पानी-बिजली को मूल भूत अधिकार की श्रेणी मे रखा है।

मकान मालिक रेंट एग्रीमेंट मे तय शर्तो के अलावा अन्य कोई शर्त नही जोड़ सकते है। यदि किरायेदार घर पर नही है, तो मकान मालिक उसके घर का ताला नही तोड़ सकता है, और न ही उसका समान घर से बाहर फेंक सकता है, साथ ही पूर्व सूचना के आधार पर किरायेदार को बाहर नही निकाला जा सकता है।

मकान-मालिक के अधिकार

यदि किरायेदार मकान मालिक को किराया समय से नही दे पाता है, तो मकान मालिक मुआवजा पाने का हकदार होता है,पहले 2 माह देरी के लिये किराये का दोगुना हर्जाना और 4 माह देरी के लिये किराये का चार गुना हर्जाना पाने का अधिकारी होता है। इसके किरायेदार मकान को गंदा, तोड़-फोड़ या नुकसान पहुचाने की स्थिति मे टोक भी सकता है साथ ही घर खाली कराने की स्थिति मे 1 माह पहले ही मकान मालिक को सूचित करना होगा।

मकान मालिक और किरायेदार के बीच क्या समझौता होता है?

मकान मालिक और किरायेदार के मध्य किसी मकान, दुकान या प्लाट को किराये पर लेने या देने की दशा मे दोनो पक्ष अपनी-अपनी शर्तो के आधार पर एक निश्चित किराया तय राशि, किराया देने की अवधि, किस कार्य के लिये दिया जा रहा है और समस्त आपसी सहमति को इस एग्रीमेंट मे दर्ज कराना होता है, जैसा कि बाद मे कोई पक्ष यदि किसी करार को नही मानता है या दुरूपयोग करता है, तो दोनो मे कोई भी पक्ष न्याय पाने का हकदार होता है।

रेंट एग्रीमेंट कितने प्रकार के होते हैं? (How many types of rent agreement are there?)

किरायेदारी विलेख Rent Agreement मकान मालिक एवंम् किरायेदार के मध्य एक कानूनी करार है, जो दो प्रकार के हो सकते है, हालांकि हम सबने देखा होगा कि घरेलू Residential और दुकान/प्लाट कामर्शियल Commercial उपयोग हेतु विलेख तैयार किये जाते है, लेकिन क्या आप जानते है कि घरेलू उपयोग हेतु किरायेदारी विलेख तैयार करने के लिये शर्ते कामर्शियल उपयोग किरायेदारी विलेख से भिन्न होती है।

किरायेदार किराया न दे तो क्या करे? (What to do if the tenant does not pay the rent?)

यदि कोई किरायेदार मकान मालिक को दो माह से लगातार किराया नही देता है, तो मकान मालिक अपनी जगह खाली कराने के लिये कोर्ट जा सकता है, इसके अलावा दो माह से लगातार किराया नही दे पाता है तो मकान मालिक चाहे तो मकान खाली करने के लिये नोटिस दे सकता है और नोटिस के माध्यम से नये रेंट कांन्ट्रोल के तहत 2 माह देरी पर 2 गुना और 4 माह देरी पर 4 गुना किराये का हर्जाना लगाया जा सकता है।

रेंट एग्रीमेंट का क्या फायदा है? (What is the advantage of rent agreement?)

किरायेदार एवंम् मकान मालिक के मध्य एक एग्रीमेंट होता है, जिसे किरायेदारी विलेख tenancy deed कहते है। रेंट एग्रीमेंट मकान मालिक और किरायेदार दोनों के अधिकारों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट करता है, किसी भी असहमति या विवाद के मामले में दोनों पक्षों को कानूनी सुरक्षा प्रदान कराता है। किरायेदार और मकान मालिक के मध्य असमय किराये की बढोत्तरी, देय किराए की राशि, देय तिथि और देर से भुगतान के लिए दंड/हर्जाना जैसे प्रत्येक प्रकार के वित्तीय दायित्वों से अवगत कराता है।

रेंट एग्रीमेंट में कौन गवाह हो सकता है? (Who can be the witness in the Rent Agreement?)

रेंट एग्रीमेंट Rent Agreement मे किरायेदार एवंम् मकान मालिक के मध्य जब किरायेदारी आरम्भ होती है तो कम से कम दो गवाह होना अनिवार्य है, गवाह वयस्क होने चाहिए जो समझौते के पक्षकार न हो, अर्थात वे मकान मालिक या किरायेदार नहीं होने चाहिये। आमतौर पर, कोई भी व्यक्ति जो 18 वर्ष से अधिक आयु का है और स्वस्थ दिमाग का है और दस्तावेज़ की प्रकृति को समझने में सक्षम है, तो वह गवाह के रूप में कार्य कर सकता है।

क्या मकान मालिक 1 साल बाद किराया बढ़ा सकता है? (Can the landlord increase the rent after 1 year?)

मकान मालिक Landlord एक साल के बाद किराया बढ़ा सकता है या नहीं, यह रेंट एग्रीमेंट की शर्तों पर निर्भर करता है, यदि रेंट एग्रीमेंट किराया बढो़त्तरी का समय और बढो़त्तरी दर इत्यादि कही गई है, तो मकान मालिक किराये मे बढ़ोत्तरी आसानी से कर सकता है। हांलाकि रेंट कंट्रोल कानून के तहत 1 वर्ष के बाद किराये मे बढोत्तरी की जा सकती है। आवासीय मकान/घर के लिये 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी और कामर्शियल उपयोग मे 7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी किराये मे की जा सकती है।

भारत में एक किरायेदार को बेदखल करने में कितना समय लगता है? (How long does it take to evict a tenant in India?)

भारत में एक किरायेदार को बेदखल करने की प्रक्रिया विभिन्न कारणों जैसे- काफी सयम से किराया न देना, किराये मे बढ़ोत्तरी न करना, प्रापर्टी को नुकसान पहुचाना, कोई विधि विरूद्ध कार्य करना मामले की जटिलता के आधार पर भिन्न हो सकते है। हांलाकि, भारत में बेदखली की प्रक्रिया को पूरा करने में कई महीनों से लेकर कई वर्षों तक का भी समय लग जाता है।

नोटिस की अवधि: मकान मालिक, किरायेदार को बेदखली के लिये एक कानूनी समय दर्ज करते हुये एक लिखित नोटिस देना होगा। नोटिस की अवधि 15 दिनों से लेकर 6 महीने तक हो सकती है।
मुकदमा दायर करना: यदि किरायेदार नोटिस अवधि के बाद भी परिसर खाली नहीं करता है, तो मकान मालिक न्यायालय में बेदखली के लिए मुकदमा दायर कर सकता है।
अदालती कार्यवाही: न्यायालय किरायेदार को सम्मन जारी करेगी और बेदखली की वैधता निर्धारित करने के लिए सुनवाई करेगी। अदालत किराएदार को मामले के लंबित रहने के दौरान किराए का भुगतान करने या अदालत में जमा करने का निर्देश भी दे सकता है।
कब्जे का आदेश: अगर अदालत मकान मालिक के पक्ष में पाता है, तो वह एक कब्जा आदेश जारी कर सकता है, जो मकान मालिक को संपत्ति का कब्जा लेने का कानूनी अधिकार देता है।
कब्जे के आदेश का निष्पादन: मकान मालिक पुलिस या अदालत के अधिकारियों की मदद से संपत्ति का कब्जा ले सकता है।

भारत मे किरायेदार और मकान मालिक के मध्य हो रहे वाद विवाद मे लगभग् 6 माह से कई वर्ष तक भी लग सकते है, नये रेंट कंट्रोल कानून के अन्तर्गत यदि किरायेदार पिछले 12 से रह रहे मकान पर अपना मालिकाना हक नही जता सकता है।

मकान मालिक का अधिकार क्या है? (What is the landlord’s right?)

एक मकान मालिक के, अपने कुछ अधिकार हैं जो कानून द्वारा संरक्षित हैं। यहाँ कुछ प्रमुख अधिकार जो निम्नप्रकार है-

किराया प्राप्त करने का अधिकार: किरायेदारी विलेग की शर्तों के अनुसार किराएदार को किराए का भुगतान करने के लिए बाध्य करता है। यदि किरायेदार किराए का भुगतान करने में विफल रहता है, तो मकान मालिक बकाया किराए की वसूली के लिए हर्जाना अथवा कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
बेदखली का अधिकार: अगर किरायेदार किरायेदारी विलेख का किसी भी प्रकार से उल्लंघन करता है या किराए का भुगतान करने में विफल रहता है, तो मकान मालिक को कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से किरायेदार को बेदखल करने का अधिकार है।
संपत्ति मे बदलाव करने अधिकार: मकान मालिक यदि सम्पत्ति मे कोई बदलाव, रखरखाव और मरम्मत कार्य के लिए संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार है, लेकिन उन्हें किरायेदार को उचित नोटिस देना होगा।
एग्रीमेंट को समाप्त करने का अधिकार: यदि किरायेदार एग्रीमेंट की किसी भी शर्त का उल्लंघन करता है तो मकान मालिक को एग्रीमेंन्ट समाप्त करने का अधिकार है।
खर्चों में कटौती का अधिकार: मकान मालिक को सुरक्षा जमा से संपत्ति के रखरखाव और मरम्मत से संबंधित खर्चों में कटौती करने का अधिकार है।
गैर-भेदभाव का अधिकार: मकान मालिक को किरायेदारों के साथ उनकी जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता या अन्य संरक्षित विशेषताओं के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है।

क्या कोई किरायेदार कितने वर्ष बाद किराये की संपत्ति का मालिक बन सकता है? (After how many years can a tenant become the owner of the rental property?)

भारत में, एक किराएदार एक किराये की संपत्ति का मालिक बन सकता है यदि उसने लगातार एक निश्चित अवधि के लिए संपत्ति पर कब्जा कर रखा है, हांलाकि प्रत्येक स्टेट मे किराया नियंत्रण अधिनियमों के तहत “प्रतिकूल कब्जे” या “बैठने के अधिकार” के रूप में जाना जाता है। प्रतिकूल कब्जे का दावा करने के लिए आवश्यक निरंतर कब्जे की अवधि एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होती है।

आमतौर पर, किराया नियंत्रण अधिनियमों के तहत, एक किरायेदार किराए की संपत्ति के स्वामित्व का दावा कर सकता है, अगर उन्होंने लगातार राज्य के आधार पर 12 से 20 साल की अवधि के लिए कब्जा कर लिया है। इस अवधि के दौरान, किरायेदार को नियमित रूप से किराए का भुगतान करना चाहिए और संपत्ति का रखरखाव करना चाहिए।

इन्हे भी पढ़े-

रेंट अग्रीमेंट की आवश्यकता क्यों होती है? (Why is rent agreement required?)

कानूनी सुरक्षा: रेंट एग्रीमेंट एक कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज है जो मकान मालिक और किरायेदार के बीच रेंट एग्रीमेंट के नियमों और शर्तों को स्पष्ट करता है। यह दोनों पक्षों के अधिकारों और हितों की रक्षा करने में मदद करता है और किसी भी विवाद के मामले में कानूनी सहारा प्रदान करता है।
शर्तों पर स्पष्टता: एक रेंट एग्रीमेंट स्पष्ट रूप से रेंट एग्रीमेंट के नियमों और शर्तों को स्पष्ट करता है, जिसमें किराया, सुरक्षा जमा, रखरखाव की जिम्मेदारियां और अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान भी शामिल हैं। यह मकान मालिक और किरायेदार के बीच किसी भी गलतफहमी या भ्रम को दूर करने में मदद करता है।
रिकॉर्ड कीपिंग: रेंट एग्रीमेंट मकान मालिक और किरायेदार के बीच रेंट एग्रीमेंट के रिकॉर्ड के रूप में कार्य करता है। इसका उपयोग एग्रीमेंट की शर्तों और किराए और सुरक्षा जमा के भुगतान को सत्यापित करने के लिए किया जा सकता है।
कानूनी कार्यवाही के लिए साक्ष्य: किसी भी विवाद या कानूनी कार्यवाही के मामले में, एक रेंट एग्रीमेंट मकान मालिक या किरायेदार के दावों का समर्थन करने के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में काम कर सकता है।
कानून का अनुपालन: भारत के कई राज्यों में रेंट एग्रीमेंट रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत एक कानूनी आवश्यकता है। रेंट एग्रीमेंट न होने पर कानूनी और आर्थिक दंड लग सकता है।

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